मक्का


    मक्का हेतु जलवायु- मक्का की खेती विभिन्न प्रकार की जलवायु में की जा सकती है, परन्त उष्ण क्षेत्रों में मक्का की वृद्धि, विकास एवं उपज अधिक पाई जाती है। यह गर्म ऋतु की फसल है। इसके जमाव के लिए रात और दिन का तापमान ज्यादा होना चाहिए। मक्के की फसल को शुरुआत के दिनों से भूमि में पर्याप्त नमी की आवश्यकता होती है। जमाव के लिए 18 से 23 डिग्री सेल्सियस तापमान एवं वृद्धि व विकास अवस्था में 28 डिग्री सेल्सियस तापमान उत्तम माना गया है।


    उपयुक्त भूमि-मक्का की खेती सभी प्रकार की भूमि में की जा सकती है। परंतु मक्का की अच्छी बढ़वार और उत्पादकता के लिए दोमट एवं मध्यम से भारी मिट्टी जिसमें पर्याप्त मात्रा में जीवांश और उचित जल निकास का प्रबंध हो, उपयुक्त रहती है। लवणीय तथा क्षारीय भूमियां मक्का की खेती के लिए उपयुक्त नहीं रहती। 


    अंतवर्तीय फसलें- मक्का की विभिन्न अवधियों में पकने वाली प्रजातियां उपलब्ध हैं जिसके कारण मक्का को विभिन्न अतफसलीकरण खेती के रूप में आसानी से उगाया जा सकता है। मक्का के मुख्य अंतः फसल पद्धतियां इस प्रकार हैं, जैसे- 1. मक्का + उडद, ग्वार व मुंग। 2. मक्का + सेम, भिण्डी, बरवटी व हरा धनिया, 3. मक्का + तिल, सोयाबीन आदि।मक्के की फसल में अंतरवर्तीय फसलों को 2-2, 2-4 या 2-6 अनुपात में लगाया जा सकता है, परंतु 1-1 सबसे उपयुक्त पाया गया है।


   भूमि की तैयारी- पहली जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से करें। उसके बाद 2 से 3 जुलाई हैरो या देसी हल से करें, मिट्टी के ढेले तोड़ने एवं खेत सीधा करने हेतु हर जुताई के बाद पाटा या सुहागा लगाएँ । यदि मिट्टी में नमी कम हो तो पलेवा करके जताई करनी चाहिए। सिंचित अवस्था में 60 सेंटीमीटर की दूरी पर मेड़े बनानी चाहिए जिससे जल निकासी में आसानी रहती है और फसल भी अच्छी बढ़ती है।


    उन्नत किस्में- अति शीघ्र पकने वाली किस्में (75 दिन से कम)- जवाहर मक्का-8, विवेक-4, विवेक- 17 विवेक-43 विवेक42 और प्रताप हाइब्रिड मक्का- 1 आदि प्रमुख ।


   शीघ्र पकने वाली किस्में ( 85 दिन से कम)- जवाहर मक्का- 12, अमर, आजाद कमल, पंत संकुल मक्का- 3, चन्द्रमणी, प्रताप- 3, विकास मक्का- 421, हिम- 129, डीएचएम- 107, डीएचएम109 पूसा अरली हाइब्रिड मक्का1, पूसा अली हाइब्रिड मक्का-2, प्रकाश, पी एम एच- 5, प्राङ्क 368, एक्स- 3342, डीके सी7074, जेकेएमएच- 175 और हाईशेल व बायो- 9637 आदि प्रमुख है। 



     मध्यम अवधि में पकने वाली किस्में (95 दिन से कम)- जवाहर मक्का- 216, एचएम-10, एचएम-4, प्रताप-5, पी- 3441, एनके-21, केएमएच- पूर्व 3495 केएमएच- 3712 एनएमएच- 803 प्रति और बिस्को 2418 आदि मख्य है।


    देरी की अवधि में पकने वाली (95 दिन से अधिक)- गंगा- 11 त्रिसुलता, डेक्कन- 101, डेक्कन- 103 डेक्कन- 105, एचएम- 11, एलक्यूपीएम-4, सरताज, प्रो- 311. बायो- 9681.सीड टैक- 2324 बिस्को- 855. एनके- 6240 और एसएमएच-3904 आदि प्रमुख है।


    विशिष्ट मक्का की किस्में- बेबीकॉर्नवी एल-78, पी ई एच एम-2, पी ई एच एम- 5 और वी एल बेबी कॉर्न-1आदि।


    पॉपकॉर्न- अम्बर पॉप, वी एल अम्बर पॉप और पर्ल पॉप आदि।


    स्वीट कॉर्न- माधुरी, प्रिया, विन ओरेंज और एस सी एच-1 आदि।


    उच्च प्रोटीन मक्का- एचक्यू पी एम-1, 5 व 7, शक्तिमान 1, 2, 3 व 4 और विवेक क्यू पी एम-9 आदि।


     पशु चारा किस्मे- जे- 1006, प्रताप चरी-6 और अफ्रीकन टाल इत्यादि है


    बीज दर- मक्का बीज फसल के बीज शीघ्रता से अपनी अंकुरण क्षमता लिए खो देते हैं, इसलिए ये शरदकालीन आवश्यक है कि बोने से नवंबर पूर्व बीज का अंकुरण बुवाई प्रतिशत जाँच करें। बुआई हेतू मध्य 8 किलोग्राम प्रति एकड़ बीज अधिक की आवश्यकता होती है। संकर कम किस्मों के लिए हर साल नया बीज बुवाई खरीदकर प्रयोग करें। 


    बीज उपचार- फसल को शुरूआती अवस्था में रोगों से बचाने के लिए बीज उपचार बहुत जरूरी है। बीज उपचार पहले फफूदीनाशक से करें, फिर कीटनाशक से व अंत में जैविक टीके से करें। हर चरण के बाद बीज सूखा लें, चरण इस प्रकार है, 


    फफूदानाशक बाज उपचार- बुवाइ पूर्व बीज को थायरम या कार्बेन्डाजिम 3 ग्राम प्रति किलो बीज की दर से उपचारित करें, इन्हें पानी में मिलाकर गीला पेस्ट बनाकर बीज पर लगाएं


    कीटनाशक बीज उपचार- बीज और नए पौधों को रस चूसक एवं मिट्टी में रहने वाले कीटों से बचाने के लिए कीटनाशक से बीज उपचार जरूरी है। बीज को थायोमेथोक्जाम या इमिडाक्लोप्रिड 1 से 2 ग्राम प्रति किलो बीज की दर से उपचारित करें।


        


     जैविक टीके से बीज उपचार- फफूदीनाशक तथा कीटनाशक से उपचार के बाद बीज को एजोटोबेक्टर 5 ग्राम प्रति किलोबीज से उपचारित करके तुरंत बुवाई करें।


    बुवाई का समय- 1. मुख्य फसल के लिए बुवाई मई के अंत तक करें। 2. शरदकालीन मक्का की बुवाई अक्टूबर अंत से नवंबर तक करें। 3. बसंत ऋतु में मक्का की बुवाई हेतु सही समय जनवरी के तीसरे सप्ताह में मध्य फरवरी तक है। 4. बुवाई में देरी करने से अधिक तापमान तथा कम नमी के कारण बीज कम बनता है। 5. यदि बारिश न होने के कारण बुवाई में देरी हो जाए तो फलीदर फसलों की अंतर फसल लगाएं।


    बिजाई की दूरी- 1. बीज हाथों द्वारा या सीड ड्रिल से बोया जा सकता है। 2. बीज को 75 सेंटीमीटर दूर कतारों या मंडों पर बोएं, बीज से बीज (पौधे से पौधे) का अंतर 22 सेंटीमीटर रखें, इस तरह प्रति एकड़ 21000 पौधे लगेंगे। 3. अधिक पैदावार हेतु पाधा का 75 सटामाटर दुरा का कतारा पौधो से पौधे में 20 सेंटीमीटर का अंतर रख कर बुवाई करे, इस तरह 26000 पौधे प्रति एकड़ लगेंगे। 4. बीज की गहराई 3 से 5 सेंटीमीटर रखें। 5. मेड़ों पर बुवाई करनी हो तो बीज पूर्व पश्चिम दिशा में बनी मेड़ों की दक्षिण ढलान विधि की जगह बुवाई कतारों में करें


    खरपतवार नियंत्रण- मक्का की खेती को 30 से 40 दिन तक खरपतवार मक्त रखना जरूरी है, जिसके लिए 1 से 2 निराई गुड़ाई की जरूरत होती है। पहली गुडाई बुवाई के 25 से 30 दिन पर व दूसरी बुवाई 40 से 45 दिन पर करें। 7 पर कर।