नकदी फसल प्याज
किसान भाई कुछ महत्वपूर्ण कृषि क्रियाओं को ध्यान में रखकर और उनको उपयोग में लाकर प्याज की खेती से अच्छी पैदावार प्राप्त कर सकते है। क्योकि अच्छी पैदावार के लिए खेती की उन्नत तकनीकी और उन्नत किस्मों की जानकारी होना आवश्यक है। इस लेख में प्याज की उन्नत खेती कैसे करें, जिससे की किसानों को अधिकतम उत्पादन प्राप्त हो का उल्लेख किया गया है। प्याज सूर्य के प्रकाश व तापमान के प्रति बहुत संवेदनशील है। यह मुख्यतः एक शीतकालीन फसल है। आमतौर पर इसकी अच्छी बढ़वार के लिए आरम्भ 10 से 15 डिग्री सेल्सियस और कंदों के विकास के लिए 20 से 30 डिग्री सेल्सियस तथा कंद निकालते समय 30 से 35 डिग्री सेल्सियस तापमान व 10 से 12 घंटे सूर्यप्रकाश की आवश्यकता होती है। प्याज की खेती के प्रतिकूल जलवायु न मिलने पर उपज पर भारी प्रभाव पड़ता है।
उपयुक्त भूमि- प्याज की खेती हर प्रकार की भूमि में की जा सकती है। प्याज की अधिकतम उपज के लिए जीवांशयुक्त उचित जल निकास वाली बलुई दोमट या दोमट मिट्टी सबसे उपयुक्त होती है। अधिक अम्बलीय और क्षारीय भूमि में कन्द का विकाश अच्छे से नही होता है। इस प्रकार की मिट्टी में कंदो का विकास ठीक से नहीं होता है। इसके लिए मिट्टी का पी एच मान 6.5 से 7.5 होना चाहिए।
भूमि की तैयारी- प्याज की अच्छी पैदावार के लिए खेत की चार से पांच बार अच्छी जुताई करनी चाहिए। प्रत्येक जुताई के बाद पाटा लागाकर मिट्टी को भूरभूरी बना लेनी चाहिए। भूमि की सतह से 15 सेंटीमीटर की उंचाई पर 1.2 मीटर चौडी पट्टी पर रोपाई की जानी चाहिए। इसके लिए खेत को रेज्डबेड सिस्टम से भी तैयार किया जा सकता है।
खाद और उर्वरक- प्याज के अधिक उत्पादन के लिए सड़ी हुई गोबर की खाद को 20 से 30 दिन रोपाई से पहले देकर मिटटी में अच्छी तरह से मिला देना चाहिए। खेत की तैयारी करते समय, अंतिम जुताई के समय खेत में फासफोरस और पोटाश की पूरी मात्रा तथा नाइट्रोजन का तीसरा भाग देना चाहिए, बचे हुये नाइट्रोजन को दो भाग में पहला भाग रोपाई से 20 से 25 दिन बाद उपरिवेशन के रूप में देना चाहिए, दूसरा भाग 50 से 60 दिन बाद या कंद बनने से पहले देना चाहिए।
उन्नत किस्में
रबी मौसम- एग्रीफाउण्ड लाईट रेड, एग्रीफाउण्ड डार्क रेड, अर्का कल्याण, अर्का निकेतन, पूसा साध्वी, पटना रेड, पूसा रेड, एन.- 53, नासिक रेड, बसन्त, पूना रेड, भीम रेड, भीमा सुपर आदि प्रमुख है।
खरीफ मौसम- अर्को लालिमा, अर्का पीताम्बर. अर्का कीर्तिमान. एन.-53, एग्रीफाउण्ड डार्क रेड, बसन्त आदि प्रमुख है।
लाल रंग की किस्में- भीमा लाल. भीमा गहरा लाल, भीमा सुपर, हिसार- 2, पंजाब लाल गोल, , पंजाब चयन, पटना लाल, नासिक लाल, लाल ग्लोब, बेलारी लाल, पूना लाल, पूसा लाल, पूसा रतनार, अर्का निकेतन, अर्का प्रगति, अर्का लाइम, कल्याणपुर लाल और एल2-4-1 इत्यादि प्रमुख है।
पीले रंग वाली किस्में- आई आई' एच आर पिली, अर्का पीताम्बर, अर्ली ग्रेनो और येलो ग्लोब इत्यादि प्रमुख है।
सफेद रंग वाली किस्में- भीमा शुभ्रा, भीमा श्वेता, प्याज चयन- 131, उदयपुर 102, प्याज चयन- 106, नासिक सफ़ेद, सफेद ग्लोब, पूसा व्हाईट राउंड, पसा व्हाईट फ्लैट एन- 247-9-1 और पूसा राउंड फ्लैट इत्यादि प्रमुख है।
संकर किस्में- एक्स कैलिवर, बर्र गंधी, कोपी मोरेन और रोजी समा इत्यादि है।
बोआई का समय- खरीफ प्याज के लिए बीज की बोआई पूरे जून महीने में की जाती है और रबी प्याज के लिए मध्य अक्टूबर से नवम्बर में बोआई की जाती है
बीज की मात्रा- रबी में प्रति हेक्टर रोपाई के लिए 8 से 10 किलो की आवश्यकता होती है। जबकि खरीफ में 15 से 20 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर बीज की आवश्यकता होती हैं।
पौधा तैयार करना- बीज को ऊँची उठी हुई क्यारियों में बोया जाता है। क्यारियों की चौड़ाई 1 से 1.25 मीटर और लम्बाई सुविधानुसार रखते हैं। वैसे 3 से 5 मीटर लम्बी क्यारियाँ सुविधाजनक होती है। एक हेक्टेयर रोपाई के लिए 70 क्यारियाँ (1.0 ङ्ग 5.0 मीटर आकार की) पर्याप्ति होती है। रोगों से बचाने के लिए बीज और पौधशाला की मिट्टी को कवकनाशी थाईरम या कैप्टान आदि से उपचारित करना चाहिए। 2 से 3 ग्राम दवा प्रति किलोग्राम बीज के लिए पर्याप्त होती है। भूमि उपचार करने के लिए 4 से 5 ग्राम दवा प्रति वर्ग मीटर भूमि के लिए आवश्यक है। पौध तैयार करने वाली मिट्टी को बोआई से 15 से 20 दिन पहले पानी देकर सफेद पॉलिथीन से ढककर सौरियकरण' या बोआई के पहले ट्रायकोडर्मा विरिडी कवक से उपचारित करने से भी आर्द्रगलन कम होती है। बीज को 4 से 5 सेंटीमीटर की दूरी पर कतारों में बोना चाहिए। बीज की बोआई के बाद आधा सेंटीमीटर तक सड़ी व छनी हुई गोबर की खाद या मिट्टी से बीज पूर्णतया ढक देते हैं। इसके बाद फव्वारों से हल्की सिंचाई करके क्यारियों को सूखी घास से ढक देते हैं। जब बीज अच्छी तरह अंकुरित हो जाए तो घास को हटा देना चाहिए।रोज फव्वारे से हल्की सिंचाई करते रहना चाहिए। इस प्रकार से खरीफ में 6 से 7 सप्ताह में तथा रबी में 8 से 9 सप्ताह में पौध रोपाई के लिए तैयार हो जाती है।
रोपाई का समय-खरीफ मौसम में प्याज की रोपाई अगस्त में करते हैं और रबी मौसम में, प्याज की रोपाई दिसम्बर से 15 जनवरी तक करते हैं।
रोपाई की दूरी- रोपाई करते समय कतारों की दूरी 15 सेंटीमीटर तथा कतार में पौधे की दूरी 10 सेंटीमीटर रखते हैं। रोपाई के तुरन्त बाद ह' हल्की सिंचाई करना अत्यंत आवश्यक होता है। नही तो 100 प्रतिशत तक हानि हो सकती है। खरीफ में प्याज रोपाई के लिए ऊँची उठी क्यारियाँ बनानी चाहिए। रोपाई से पूर्व पौधे की जड़ों को 0.1 प्रतिशत कारबेन्डाजिम + 0.1 प्रतिशत मोनोक्रोटोफॉस के घोल में डूबोकर लगाने से पौधे स्वस्थ रहते है
सिचाई प्रबंधन- पौध की रोपाई के तुरन्त बाद हल्की सिंचाई करना चाहिए। सर्दी में सिंचाई लगभग 8 से 10 दिन के अन्तर पर करते हैं तथा गर्मी में प्रति सप्ताह सिंचाई की आवश्यकता होती है। जिस समय कंद बढ़ रहे हों, उस समय सिंचाई जल्दी करते हैं। पानी की कमी के कारण कंद अच्छी तरह से नहीं बढ़ पाते है और इस तरह से पैदावार में कमी हो जाती है। प्याज फसल की सिंचाई ड्रिप से भी अच्छी तरह से की जा सकती है।
खरपतवार नियंत्रण- प्याज के पौधे की जड़े अपेक्षाकृत कम गहराई तक जाती है। इसलिए अधिक गहराई तक गुडाई नहीं करनी चाहिए। अच्छी फसल के लिए 3 से 4 बार खरपतवार निकलना आवश्यक होता है। खरपतवारनाशी का भी प्रयोग किया जा सकता है। पेंडीमेथिलीन 3.5 लीटर प्रति हेक्टर रोपाई के तीन दिन बाद तक 800 लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करने से खरपतवारों का अंकुरण नही होता है। खरपतवार नाशक दबा डालने के बाद भी 40 से 45 दिनों के बाद एक निराई-गुड़ाई आवश्यक है।
पौध गलन रोग- इसकी रोकथाम के लिए 0.2 प्रतिशत थीरम से बीज का उपचार करना चाहिए, 2 ग्राम दवा प्रति किलोग्राम बीज को उपचारित करे।
पर्पल लीफ ब्लोच- फसल में इस रोग की रोकथाम के लिए 2 किलोग्राम कापर आक्सीक्लोराइडका प्रति हेक्टेयर छिड़काव करना चाहिए, साथ में 3 ग्राम एंडोसल्फान प्रति लीटर में मिलाकर छिड़काव करे।
जड़ सडन रोग- इसके लिए कार्बेन्डाजिम 1 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज को उपचारित करे उसके साथ साथ रोपाई के समय 1 ग्राम कार्बेन्डाजिम प्रति लिटर पानी में पौध को उपचारित करे
अंगमारी- पत्तियों पर सफेद धब्बे बाद में पीले पड़ जाते है। इसकी रोकथाम के लिए मेन्कोजेब या जाइनेब 2 ग्राम प्रति लिटर पानी में मिलाकर छिडकाव करना चाहिए।
तुलासिता- पत्तियों के निचले हिस्सों में सफेद रुई जैसे फफुद लगना। इसके रोकथाम के लिए 2 ग्राम मेन्कोजेब या जाइनेब प्रति लिटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करना चाहिए।
पर्ण जिव (थ्रिप्स)- ये किट छोटे छोटे आकर के होते है, और ये किट तापमान वृद्धि के साथ तेजी से बढ़ते है। इन कीटो द्वारा पत्तियों का रस चूसने से पत्तियों का रंग सफेद पड़ जाता है। इमिडाक्लोप्रिड 17.8 एस एल 0.5 मिलीलीटर प्रति लिटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करना चाहिए।आवश्यक हो तो 10 से 15 दिन बाद फिर दोहराएं।
खुदाई और प्याज को सुखाना- खरीफ फसल को तैयार होने में लगभग 5 माह लग जाते है, क्योकि कंद नवम्बर में तैयार हो जाता है, जिस समय तापमान काफी कम होता है। पौधे पूरी तरह सुख नहीं पाते इसलिए जैसे ही कंद अपने पूरे आकार की हो जाये और उनका रंग लाल हो जाये करीब 10 दिन खुदाई से पहले सिचाई बन्द कर देनी चाहिए। इससे कंद सुडौल और ठोस हो जाते है तथा उनकी वृद्धि रुक जाती है। जब कंद अच्छे आकार के होने पर भी खुदाई नहीं की जाती है, तो वे फटना शुरू कर देते है। खुदाई के बाद इनको कतारों में रखकर सुखा देते हैं। पत्ती को गर्दन से लगभग 2.5 सेंटीमीटर उपर से अलग कर देते हैं तथा फिर एक सप्ताह तक सुखा लेते हैं। रोपाई के 75 दिन बाद 0.2 प्रतिशत मैलिक हाईड्रोजाइड रसायन का छिड़काव और खुदाई से 10 से 15 दिन पहले सिंचाई रोकने से भंडारण में होने वाली क्षति कम हो जाती है। रबी फसल पकने पर जब प्याज की पत्तियाँ सुखकर गिरने लगे तो सिंचाई बन्द कर देनी चाहिए तथा 15 दिन बाद खुदाई कर लें, आवश्यकता से अधिक सिंचाई करने पर प्याज के कंदों की भण्डारण क्षमता कम हो जाती है। यदि प्याज के कंदों को भंडारण में रखने से पहले सुखाने के लिए प्याज को छाया में जमीन पर फैला देते हैं, तो सुखाते समय कंदों को सीधी धूप और वर्षा से बचाना चाहिए। सुखाने की अवधि मौसम पर निर्भर करती है। पौधे अच्छी तरह सुखाने के लिए तीन दिन खेत में तथा एक सप्ताह छाये में सुखाने के बाद 2 से 2.5 सेंटीमीटर छोड़कर पत्तियाँ काटने से भण्डारण में हानि कम होती है।
पैदावार- उपरोक्त तकनीक से प्याज की खेती करने पर खरीफ में 250 से 300 क्विंटल प्रति हेक्टर औसत पैदावार हो जाती है, और रबी में 350-450 क्विंटल प्रति हेक्टर प्याज के कंदों की पैदावार हो जाती है।