मटर

   मटर : बुवाई के समय भूमि में पर्याप्त नमी आवश्यक होती है


                 मटर रबी की एक प्रमुख दलहनी फसल है। विश्व में इसकी खेती भारत में सर्वधिक की जाती है। मटर सर्दी के मौषम में उगाई जाने वाली एक महत्वपूर्ण फसल है। इसमें न केवल प्रोटीन तत्व की मात्रा प्रचुर है, इसके आलावा विटामिन, फास्फोरस और लोहा तत्व भी काफी मात्रा में उपलब्ध होते है। 


देश भर में मटर की खेती व्यापारिक स्तर के लिए होती है। उत्तर भारत की पहाड़ियों में इसकी खेती ग्रीष्म और पतझड़ की समय की जाती है। इसकी खेती सब्जी और दाल के लिये उगाई जाती है। मटर दाल की अवशयकता की पूर्ति के लिये पीले मटर का उत्पादन करना अति महत्वपूर्ण है, जिसका प्रयोग दाल एवं बेसन के रूप में अधिक किया जाता है । पीला मटर की खेती वर्षा आधारित क्षेत्र में अधिक लाभप्रद होती है। यदि कृषक इसकी खेती वैज्ञानिक तकनीक से करें, तो मटर की फसल से अच्छी उपज प्राप्त की जा सकती है।


 इसकी फसल के लिए नम तथा ठंडी की आवश्यकता होती है। इसलिए हमारे देश में अधिकांश स्थानों पर मटर की फसल रबी की ऋतु में उगाई जाती है। इसकी बीज अंकुरण के लिये औसत 20 से 22 डिग्री सेल्सियस और अच्छी वृद्धि तथा पौधों के विकास के लिये 10 से 18 डिग्री सेल्सियस तापमान की आवश्यकता होती है। यदि फलियों के निर्माण के समय गर्म या शुष्क मौसम हो जाये तो मटर क गुणों एवं उत्पादन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। उन सभी स्थानों पर जहां वार्षिक वर्षा 60 से 80 सेंटीमीटर तक होती हैमटर की फसल सफलता पूर्वक उगाई जा सकती है। मटर के वृद्धि काल में अधिक वर्षा का होना अत्यंत हानिकारक होता है।


         भूमि का चयन- मटर के लिए उपजाऊ तथा जलनिकास वाली मृदा सर्वोत्तम है। इसकी खेती के लिए मटियार दोमट तथा दोमट भूमि उपयुक्त रहती हैं। सिंचाई की सुविधा होने पर बलुआर दोमट भूमियों में भी मटर की खेती की जा सकती है। अच्छी फसल के लिए मिटटी का पीएच मान 6.5 से 7.5 होना चाहिए।


          खेत की तैयारी- रबी की अन्य फसलों की तरह मटर की फसल के लिए खेत तैयार किया जाता है। खरीफ की फसल काटने के बाद मिट्टी पलटने वाले हल से एक जुताई की जाती है। तत्पश्चात् 2 से 3 जुताई देशी हल या कल्टीवेटर से की जाती है। प्रत्येक जुताई के बाद खेत में पाटा चलाना आवश्यक है, जिससे ढेले ट जाते हैं तथा भूमि में नमी का संरक्षण होता है। बुवाई के समय खेत में पर्याप्त नमी का होना आवश्यक है


          फसल-पद्धति- सामान्यतः मटर की फसल, खरीफ ज्वार, बाजरा, मक्का, धान तथा कपास के बाद उगाई जाती है। मटर, गेहूँ और जौ के साथ अन्तः फसल के रूप में भी बोई जाती है। हरे चारे के रूप में जई तथा सरसों के साथ इसे बोया जाता है।


          अनुमोदित किस्में- मटर की फसल से अच्छी उपज के लिए किसानों को अपने क्षेत्र की प्रचलित और अधिक पैदावार वाली किस्मों का चयन करना चाहिए। कुछ मटर की अनुमोदित और प्रचलित राज्यवार किस्में इस प्रकार है, जैसे


          महाराष्ट- जे पी- 885, अंबिका, इंद्रा (के पी एम आर- 400), आदर्श (आई पी एफ-99-25)                              और आई पी एफ डी-10-12 आदि प्रमुख है।


          गुजरात- जे पी- 885, आई पी एफ डी- 10-12, इन्द्रा और प्रकाश आदि प्रमुख है।


          पंजाब- जय (के पी एम आर- 522), पंत मटर- 42, के एफ पी- 103, उत्तरा (एच एफ                                  पी-8909) और अमन (आई पी एफ5-19) आदि प्रमुख है।


         हरियाणा- उत्तरा (एच एफ पी8909), डी डी आर- 27 (पूसा पन्ना), हरीयाल (एच एफ पी-                                 9907 बी), अलंकार जयंती (एच एफ पी-8712) और आई पी एफ-5-19 आदि                                  प्रमुख है।


          राजस्थान- डी एम आर- 7 (अलंकार) और पंत मटर- 42 आदि प्रमुख है।


          मध्यप्रदेश- प्रकाश (आई पी एफ डी1-10) और विकास (आई पी एफ डी- 9913) आदि                                     प्रमुख है।


         उत्तर प्रदेश- स्वाती (के पी एफ डी24), मालवीय मटर (एच यू डी पी- 15), विकास, सपना,                                   (के पी एम आर- 1441) और आई पी एफ-4-9 आदि प्रमुख है।


          बिहार- डी डी आर-23 (पूसा प्रभात) और वी एल मटर 42 आदि प्रमुख है।


          छत्तीसगढ़- शुभ्रा (आई एम- 9101), विकास (आई पी एफ डी- 99-13), पारस और प्रकाश                                आदि प्रमुख है।


बुवाई के लिये मैदानी क्षेत्र- उत्तरी भारत व अन्य मैदानी क्षेत्रों में दाल वाले मटर की बुवाई का उत्तम समय 15 से 30 अक्टूम्बर तक है। धान व कपास के खेत में बुवाई देर तक भी की जाती है। लेकिन देर से बुवाई करने पर उपज में भारी कमी आ जाती है। हरी फलियों सब्जी के लिए बुवाई 20 अक्टूम्बर से 15 नवम्बर तक करना लाभदायक है।


निचले पर्वतीय क्षेत्र- अगेती किस्मों के लिए बुवाई का समय सितम्बर से अक्टूबर और मध्यम किस्मों के लिए नवम्बर तक उपयुक्त रहता है।


मध्यम पर्वतीय क्षेत्र- अगेती किस्मों के लिए बुवाई का समय सितम्बर (पहला पखवाडा) और मध्यम किस्मों के लिए नवम्बर तक उपयुक्त रहता है।


उच्चे पर्वतीय क्षेत्र- अगेती किस्मों के लिए बुवाई का समय मार्च से जून और मध्यम किस्मों के लिए अक्टूबर से नवम्बर तक उपयुक्त रहता है।


बीज उपचार- उचित राइजोबियम संवर्धक (कल्चर) से बीजों को उपचारित करना उत्पादन बढ़ाने का सबसे सरल साधन है। दलहनी फसलों में वातावरणीय नाईट्रोजन स्थिरीकरण करने की क्षमता जड़ों में स्थित ग्रंथिकाओं की संख्या पर निर्भर करती है और यह भी राइजोबियम की संख्या पर निर्भर करता है। इसलिए इन जीवाणुओं का मिट्टी में होना जरूरी है। क्योंकि मिट्टी में जीवाणुओं की संख्या पर्याप्त नहीं होती है, इसलिए राइजोबियम संवर्धक से बीजों को उपचारित करना जरूरी है।


राइजोबियम से बीजों को उपचारित करने के लिए उपयुक्त कल्चर का एक पैकेट (250 ग्राम) 10 किलोग्राम बीज के लिए पर्याप्त होता है। बीजों को उपचारित करने के लिए 50 ग्राम गुड़ और 2 ग्राम गोंद को एक लीटर पानी में घोल कर गर्म करके मिश्रण तैयार करना चाहिये। सामान्य तापमान पर उसे ठंडा होने दें तथा ठंडा होने के बाद उसमें एक पैकेट कल्चर डालें और अच्छी तरह मिला लें। इस मिश्रण में बीजों को डालकर अच्छी तरह से मिलायें, जिससे बीज के चारों तरफ इसकी लेप लग जाये। बीजों को छाया में सुखायें और फिर बवाई करें। क्योंकि राइजोबियम फसल विशेष के लिए ही होता है, इसलिए मटर के लिए संस्तुत राइजोबियम का ही प्रयोग करना चाहिये।


          कवकनाशी जैसे केप्टान, थीरम आदि भी राइजोबियम कल्चर के अनकल होते हैं। राइजोबियम से उपचारित करने के 4 से 5 दिन पहले फफंदनाशी और कवकनाशियों से बीजों का शोधन कर लेना चाहिये। इसके लिए बीज जनित रोगों से बचाव हेतुफफंदनाशक दवा थायरम + कार्बन्डाजिम (241) 3 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज तथा रस चूसक कीटों से बचाव हेतु थायोमिथाक्जाम 3 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचार करें।