पौध संरक्षण
पौध संरक्षण कृषि की आवश्यक क्रिया है, इसमें कोई भी कीट नाशक प्रयोग करने से पहले कीटों के रोग प्रतिरोधक के अनुपात का पता लगाना चाहिए। समेकित कीट प्रबंधन आधारित कृषि पर्यावरण परिस्थिति (एईएसए) पद्धति विश्लेषण अपनाना चाहिए।
मख्य फसल (अनंतफसलीय/बार्डर फसलीय) के आस-पास ऐसी फसलें उगानी चाहिए जो किसान मित्र कीटों को आकर्षित करें जो हानिकारक कीटों से बचाव करें/कीटों को मार दें। गर्मी के मौसम में खेतों की गहरी जुताई करें। फसलों की प्रतिरोधी किस्मों जैसी बीटी कपास आदि का चयन करें एवं फसल चक्र, अन्त:फसल, ट्रैप क्राप अपनाकर कीट नियंत्रण करें। कीटों की निगरानी करने और उन्हें झुंडों में पकड़ने के लिए लाइट ट्रैप/चिपकने वाली टैप/फेरोमोन टैप का प्रयोग करें। कीटों जन्तओं के जैविक नियंत्रण और रोगों के प्रतिरोध के लिए परजीवी एवं कीट जीवों का उपयोग करें।
रासायनिक कीटनाशकों का प्रयोग करते समय बताए गये सभी सुरक्षा निर्देशों को अपनायें। कीटनाशकों का छिड़काव करते समय सुरक्षा के साधन जैसे मास्क, दस्तानें आदि का प्रयोग करें। हमेशा छिडकाव हवा की दिशा म कर आर अपने आप का छिड़काव स सुरक्षित रखें। कीटनाशको, पादप रक्षा यत्रो आदि को बच्चों और पालतू पशुओं की पहुंच से दूर ताला बंद कमरे में रखें। कीटनाशकों क्रय करते समय इनकी पैकिंग व वैधता की तारीख अवश्य दे ख ले। कीटनाशक विष से प्रभावित होने पर तुरंत डॉक्टर से संपर्क करें तथा कीटनाशक के डिब्बे व निर्देश पुस्तिका साथ ले जाएं। कीटनाशक के लेबल पर लिखे निर्देशों के अनुसार ही उसका प्रयोग करें। कीटनाशक की पर्ची पर लिखी हिदायतों के अनुसार कीटनाशक पात्र को नष्ट करें।
पौध संरक्षण रसायनों की खपत कम क्यों?
हमारे देश व प्रदेश के किसान पौध संरक्षण के प्रति उदासीन हैंइस कारण देश में पौध संरक्षण रसायनों की खपत मात्र 0.6 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर है। एशिया महाद्वीप के अन्य देशों में यह खपत जापान में 12.0 किलो, चीन में 13.0 किलो तथा ताइवान में 17.0 किलो प्रति हेक्टेयर है।
देश में पौध संरक्षण रसायनों की खपत का बहुत बड़ा भाग अमानक कृषि रसायनों का रसायनों का रहता है जो फसल सुरक्षा कर कृषि उत्पादन में : अपना कोई योगदान नहीं देते हैं परन्तु इनका उपयोग करने वाले किसानों की आर्थिक दशा को और कमजोर बना देते हैं। इसके साथ- साथ ये अमानक रसायन कीटों में इन रसायनों के प्रति प्रतिरोधी क्षमता बढ़ाने में भी योगदान करते हैं क्योंकि इन रसायनों में सक्रिय पदार्थ की मात्रा कम रहती है जो कीटों में प्रतिरोधी क्षमता बढ़ाने में सहायक होती है। इन अमानक कीट रसायनों के सस्ते होने के कारण कभी- कभी वहद क्षेत्र में उपयोग होने से कीट नियंत्रित न होने के कारण पूरी फसल नष्ट होने होने की परिस्थितियां बन जाती है जैसा कि पिछले वर्ष पंजाब में अमानक कीटनाशकों के उपयोग के कारण 3 लाख 32 हजार हेक्टेयर में उगाई गई कपास का फसल काटा क प्रकाप उगाई गई कपास की फसल कीटों के प्रकोप के कारण नष्ट हो गयी थी जिसके लिए पंजाब के सरकार को 673 करोड़ रुपये मुआवजे के तौर पर किसानों को देने पड़े थे। देश को यह नुकसान रसायन, उत्पादन व विदेशी मुद्रा के विदशा मुद्रा के तौर पर कई गुना उठाना पड़ा।
अमानक कृषि रसायनों के उत्पादन, बिक्री आदि में प्रतिबंध लगाने में सरकार अभी भी उदासीन दिखाई दे रही हैइन पर प्रतिबंध के लिए कोई ठोस उपाय अपनाये जाने की कोई आधार रूप में नहीं दिखाई दे रही हैयदाकदा कृषि रसायनों के नमूने फेल होने के समाचार सुनाई देते हैं, परन्तु के उन पर की गई कार्यवाही की सूचना सार्वजनिक नहीं हो पाती है। सैम्पल टेस्टींग टस्टाग में इतना ज्यादा समय लगता है कि रिपोर्ट आने के पहले उस बेच का पूरा स्टाक किसानों के पास पहुँचकर खेतों में छिड़क दिया जाता है। इन परिस्थितियों में सामान्यतः देश व किसान के हित को न देखकर उत्पादन तथा विक्रेता के हितों को प्राय- देखा जाता है। यदि यही परिस्थितियां बनी रही तो पंजाब के किसानों के पिछले वर्ष के आंदोलन की स्थिति अन्य प्रदेशों में भी बन जाये तो इसमें कोई आश्चर्य नहीं होगा।
अमानक कीटनाशकों से किसान को भी दूर रहना होगा। उसे उपयोग में का प्रभाव व उपयोगिता का आकलन करना होगा, अन्यथा इसके परिणाम उसे ही भुगतने होंगे। राज्य सरकारों को भी अमानक कृषि रसायनों के उत्पादन तथा बिक्री पर लगाम लगाना होगी ताकि कृषि रसायनों के प्रति किसान का विश्वास बढ़ सके और वह भी जापान चीन की तरह इन का उपयोग कर फसलों की उत्पादकता - बचा सकें।