सोयाबीन में लगने वाले कीट एवं रोगों की पहचान तथा उपचार
सोयाबीन विश्व की सबसे महत्वपूर्ण तिलहनी व ग्रंथिफुल फसल हें. यह एक बहूद्धेशीय व एक वर्षीय पोधे की फसल हें. यह भारत की नंबर वन तिलहनी फसल हे सोयाबीन का वानस्पतिक नाम गलाइसीन मैक्स हे इसका कुल लेग्युमिनेसी के रूप में बहुत कम उपयोग किया जाता हैं. सोयाबीन का उद्गम स्थान अमेरिका हें इसका उत्पादन चीन, भारत आदि देश में हैं. सोयाबीन की खेती सम्पूर्ण भारत में की जाती हैं लेकिन देश में प्रथम मध्यप्रदेश दूसरा महाराष्ट तीसरा राजस्थान राज्य हें। मौसम में लगातार उतार-चढाव से मध्य प्रदेश, राजस्थान जैसी कई राज्यों की प्रमुख फसल सोयाबीन में कई तरह के कीट व रोगों का प्रकोप बढ़ गया हैभारतीय सोयाबीन अनुसंधान संस्थान के वैज्ञानिकों में ने चेतावनी जारी की है कि अगर सही समय पर इनका रोकथाम नहीं किया गया तो किसानों को नकसान उठाना पड़ सकता है। कता है।
ताना मक्खी (मेलेनेग्रोमइजा फैजियोलाई)- मादा मक्खी आकर में 2 मि.मि. लम्बी होती है। मक्खी का रंग पहले हले भूरा तथा बाद में चमकदार काला हो जाता हैमादा मक्खी अण्डे पत्ती की निचली सतह पर देती है जो की हलके पीले सफेद फ६ रंग के होते है। इल्ली हमेशा तने के अंदर रहती है तथा बिना पैरों वाली एवं हल्के पीले सफद रग का होता है शखी भरे रंग की एवं तने के अंदर ही पाई जाती है।
प्रकोप- प्रारंभिक अवस्था में प्रकाापत पा प्रकोपित पौधे मर जाते हैं। बीज पत्रों में प्रकाप क कारण टड़ा- मढ़ा लकार बनता हइल्ला पट्टा काशर सडठल का अन्दर स खात हुए तान में प्रवेश करता हैकाट खातें हुए ताने में प्रवेश करती है। कीट प्रकाप से प्रारंभिक वृद्धि अवस्था (दो से तिन पत्ता) म 20-30 प्रातशत पाध प्रकोपित होते है। इल्ली का प्रकोप फसल कटाई तक होता है। फसल में कीट प्रकोप से 25-30 प्रतिशत उपज की हानि होती है।
जीवन चक्र- मादा मक्खी शंखी से निकलने के पश्चात् पत्ती अ बीज पत्रों के बीच 14 से 64 अण्डे देती है। अण्डकाल 2-3 दिनों का होता है। इल्ली काल 7-12 दिनों का होता है। इल्ली अपना एल्लिकल पूर्ण करने के पूर्व ताने में एक निकासी छिद्र बनाकर शंखी में बदलती है। शंखी 5 -9 दिनों में वयस्क कीट में बदलती है। कीट की साल भर में 8 -9 पीढ़ियां होती है।
पोषक पौधे- रबी मौसम में मटर,सेम,और गर्मियो में उड़द, मूंग आदि
कृषिगत नियंत्रण- समय पर बुवाई करें। देर से बवाई करने से पौधे में कीट प्रकोप बढ़ जाता है। बाई देत अमित बीज दर का उपयोग करें। पकोपित पौधों को को उखाड़ कर नष्ट करें।
रसायनिक नियंत्रण- थायोमेथाक्स 70 डब्ल्य.एस.3 ग्राम / किलो ग्राम या इमिडाक्लोप्रिड 17.8 एस.एल.कब्रोफ्यूरान 3 जी का 30 किलोग्राम / हेक्टेयर की दर से बोआई के समय करें। एक या दो छिडकाव डायमिथोएट 30 ई.सी. 700 मि.ली. या इमिडाक्लोप्रिड 200मि.ली. अथवा थायोमेथाक्सम 25 डब्ल्यू. जी. का 100 ग्राम प्रति हेक्टर की दर से छिड़काव करें 7 हमेशा होलोकोन नोजल का उपयोग छिडकाव हेतु करें। इसकी रोकथाम के लिए आप जैविक रूप में कर सकते हैं, बीज को साडावीर फंगस फाईटर में शोधित करें।बुबाई में आवश्यक खाद के साथ साडावीर 1 किलो प्रति एकड़ डालें। बुबाई के 10 से 15 दिन बाद साडावीर फंगस फाईटर का छिड़काव करें
चक्र भृंग (ओबेरिया ब्रेविस)- वयस्क भंग 7-10 मि.मि.लम्बा, 2 से 4 मि.मि.चौरा तथा मादा नर की अपेछा बड़ी होती है। ग का सिर एवं वक्ष नारंगी रंग का होता है। पंख वक्ष से जुड़ा होता है। पंख का रंग गहरा भूरा-काला, श्रृंगिकाएं कलि तथा शरीर से बड़ी होती है। अण्डे पीले रंग के लम्बे गोलाकार होते है, पूर्ण विकसित इल्ली पीले रंग की 19-22 मि.मि. लम्बी तथा शारीर खंडो में विभाजित व सिर भूरा रंग का होता है
प्रकोप- पौधों में जहां पर्णवृन्त,टहनी या ताने पर चक्र बनाए जाते है, उसके ऊपर का भाग कुम्ल्हा कर सुख जाता है । मुख्य रूप से ग्रब (इल्ली) द्वारा नुकसान होता है। इल्ली पौधे के तने को अन्दर से खाकर खोखला कर देता है । पूर्ण विकसित इल्ली फसल पकने के समय पौधों को 15 से 25 से.मि. ऊचाई से काटकर निचे गिरा देती है जिससे अपरिपक्व फल्लियाँ उपयोग लायक नही होती है । प्रकोपित फसल में अधिक नुकसान होने पर करीब 50 प्रतिशत तक हनी होती है ।
जीवन चक्र - चक्र भृंग कीट का स्कि रोये समय जुलाई से अक्टूबर माह तथा अगस्त से सितंबर माह में अधिक नुकसान होता है । मादा कीट अण्डे देने के लिए पौधे के पत्ती, टहनी एवं तने के डंठल पर मुखंगो द्वारा दो चक्र 6-15 मि.मि. की दुरी पर बनती है । मादा कीट संपूर्ण जीवन कल में 10-70 अण्डे देती है अण्डो से 8 दिनों में इल्लियाँ निकलती है। जुलाई माह में दिये अण्डो से निकली इल्ली का जीवन-काल 32 से 65 दिनों का होता है ।तद्पश्चात इल्ली शंखी में परिवर्तित हो जाती है।
फसल काटने से पहल इल्लियाँ पौधों को भूमि के ऊपर से काट देती है तथा स्वंय उपरी कटे हुए पौधे के अन्दर रह जाती है। कुछ दिनों पश्चात इल्लियाँ पुन ऊपरीकटे हुए पौधों में से एक टुकड़ा 18 से 25 मि.मि. लम्बा काटती है । फिर ये इल्लियाँ इस टुकड़े में आ जाती है तथा भूमि दरारों में विशेषकर मेड़ों के पास जमीं के अन्दर टुकड़े का दूसरा छोर भी कुतरने से बंद कर सुसुप्तावस्था (248-308 दिनों हेतु) में इल्ली जीवन चक्र शुरू करती है । शंखी से वयस्क कीट 8-11 दिनों में निकलते है।
पोषक पौधे- मूंग, उड़द एवं खरपतवार, जंगली जूट, बुरवडा आदि। कृषिगत नियंत्रण- जिन क्षेत्रों में कीट प्रकोप प्रतिवर्ष होता है वहां पर ग्रीष्मकालीन गहरी जुताई अवश्य करें । मेढ़ों की सफाई करें तथा समय से खरपतवार नियंत्रण करे । फसल की बुआई समय से करें । समय से पूर्व बुआई करने से कीट प्रकोप ज्यादा होता है । बुआई हेतु 70-80 किलो ग्राम प्रति हेक्टेर बीज दर का उपयोग करें। फसल में उर्वरकों की अनुशंसित मात्रा समय से डालें विशेषकर पोटाश की मात्रा जरुर डाले अन्ाीय फसल ज्वार या मक्का के साथ बुआई न करें । किसानों इस अवस्था में सल्फ़र के साथ फंगस फाईटर का स्प्रे करते रहे
रसायनिक नियंत्रण- फसल पर कीट के अण्डे देने की शुरुआत पर निम्न में से किसी एक कीटनाशक का छिड़काव कीट नियंत्रण हेतु करे। ट्रायाजोफांस 40 ई.सी. 800 मि.ली. अथवा इथोफेनप्राक्स10 ई.सी.1000 मि.ली. प्रति हेक्टेयर ।
हरीं अर्दुधकुण्डलाकार इल्ली (पत्तियाँ खाने वाले कीट)- शलभ के अग्र पंखो पर दो छोटे चमकीले सफेद रंग के धब्बे होते है जो की अत्यंत पास होने के कारण अंग्रेजी के अंक आठ (8) के आकर के दिखते हैं । अण्डे हलके पीले रंग के एवं गोल होते है जो की इल्लियों के निकलने के पहले काले पड़ जाते है । एल्लियादिन में समान्त पत्तियों के निचे बैठी रहती है । पूर्ण विकसित इल्ली 3 । से 40 मि.मी. लम्बी होती है एवं पश्च भाग मोटा होता है। इल्लियों के पृष्ठ भाग पर एक लम्बवत पीली तथा शारीर के दोनों ओर एक-एक सफेद धारी होती है । शंख प्रारंभ में हलके पीले रंग की तथा कालान्तर में भूरे रंग की होती है शंखी 19 मि.मी.लम्बी तथा 7 मि.मी. चौड़ी होती है।
प्रकोप- इल्लियाँ पत्तियों, फूलों एवं फल्लियों को खा कर क्षति पहुँचती है। बड़ी इल्लियाँ छोटी विकसित होती हुई फल्लियों को कुतर-कुतर कर खाती है तथा बड़ी फल्लियों में छेद कर बढ़ते हुए दानों को खाती है । अधिक प्रकोप होने पर करीब 30 प्रतिशत फल्लियाँ अविकसित रह जाती है तथा उनमे डेन नहीं भरते।
जीवन चक्र- मादा शलभ अपने जीवन कल में 40 से 200 अण्डे देती है अत्यधिक ज्यादा प्रकोप होने पर पत्ती डंठल या तानों पर भी अण्डे देती हैअण्डे हलके पीले रंग के एवं गोल होते है जो की इल्लियों के निकलने के पहले काले पड़ जाते है। अण्डकाल 3 से 5 दिनों का होता है। इल्ली कल 14 -15 दिनों का होता है। शंखी से वयस्क 5-7 दिनों में निकलते है। कीट अपना एक जीवन चक्र 24-26 दिनों में पूर्ण करता है।
पोषक पौधे- मटर, मूली, सरसों, मूंगफली, पत्तागोभी, आलू, कददूवर्गीय पौधे, करडी, बरसीम आदि।
हरी अद्धकुण्डलाकार इल्ली - वयस्क शलभ मध्यम आकर एवं सुनहरा पीले रंग की होती है । अग्र पंखों का रंग भूरा जिस पर बड़ा सुनहरा तिकोन धब्बा होता है। अण्डे पीले रंग के एवं गोल होते है नवजात इल्लियाँ हरे रंग की होती है । पूर्ण विकसित इल्ली 4 मि.मी. लम्बी होती है । शंख का रंग भूरा होता है।
प्रकोप- अण्डो से निकलकर छोटी-छोटी इल्लियाँ सोयाबीन के कोमल पत्तियाँ को खुरच कर खाती है तथा बड़ी इल्लियाँ पत्तियों को खाकर नुकसान करती है । अत्यधिक प्रकोप पर पौधा फल विहीन हो जाता है । ये बदली के मौसम में छोटी फल्लियों को खा जाती है तथा बड़ी फल्यों के बढ़ते दानों को फली में छेदकर खाती है।
जीवन चक्र- मादा शलभ साधारणत पत्ती की निचली सतह पर एक-एक कर अण्डे देती है पर प्रकोपज्यादा होने की दशा में पत्तियों के डंठल, शाखा एवं ताने पर भी अण्डे देती है। अण्डकाल 3-4 दिनों का वयस्क शलभ 2-7 दिनों तक जीवित रहती है। जीवन चक्र 27-30 दिनों में पूर्ण होता है
पोषक पौधे- मटर, फूलगोभी, मूली, आलू, अलसी आदि।
हरी अद्धकुण्डलाकार इल्ली- शलभ की लम्बाई 7.3 मि.मी. तथा पंख फैलाव पर 19.4 मि.मी. होती है । शलभ पिली भूरी रंग की होती है जिसके अगले पंख पर तिन लहरदार गहरे भूरी पट्टियांएवं पिछले पंख झिल्लीनुमा गहरे भरे रंग के होते है ।अण्डे दुधिया सफेद, गोलाकार पर ऊपरी छोर पर कुछ अन्दर दबा हुआ तथा ऊपर से निचे धारियों तथा आकार में 0.32 मि.मी. के होते हैं । नवजात इल्ली अर्धप्रदर्शी, दुधिया सफेद तथा 0.17 मि.मी. आकर में होती है । पूर्ण विकसित इल्ली 19 मि.मी. लम्बी तथा 2 मि.मी. चौडाई की होती है तथा पृष्ट भाग पर लम्बवत शरीर के दोनो ओर एक-एक सफेद धारी होती है। शंखी 7 मि.मी. लम्बी तथा 2.5 मि.मी. चौडाई होती है
जीवन चक्र- मादा शलभ एक-एक करके अण्डे पत्ती की उपरी सतह पर देती है। मादा शलभ अपने जीवन कल में 160 अण्डे देती है। सम्पूर्ण इल्ली अवस्था 11 दिनों की तथा शंखी अवस्था 5-9 दिनों की होती है। इल्लीकाल पूर्ण कर सफेद रेशों एवं पत्ती से मिश्रित बने कोए में शंखी में परिवर्तित हो जाती है। पूर्ण जीवन चक्र 26-27 दिनों का होता है।
पोषक पौधे- मूंग एवं उड़द आदि
भूरी धारीदार अर्धकुण्डलक इल्ली - वयस्क शलभ काले भूरे रंग के एवं आकर में अन्य अर्धकुण्डलक शलभ से बड़ी होती है। जिसका पंख फैलाव 35-45 मि.मी. होता हैअग्र पंखों पर तीन धूये के रंग की पट्टियां पाई जाती है। अण्डे हलके हरे रंग के गोल होते हैनवजात इल्लियाँ हरे रंग की होती है। जिनके शारीर पर छोटे छोटे रोंये पाये जाते है तथा सिर भूरे रंग का होता है । पूर्ण विकसित इल्लियाँ 40-50 मि.मी. लम्बी, भूरे-काले रंग की तथा शरीर पर भूरी पिली या नारंगी लम्बवत धारियाँ होती है ।शंखी भूरे रंग की एवं की एवं सफेद धागों तथा पत्तियाँ के मिश्रण से बने कोये में पाई जाती है
जीवन चक्र- मादा अपने जीवन काल में 50-200 अण्डे देती है। जिसमे से 3-5 दिनों में नवजात इल्लियाँ निकलती है। इल्लियाँ 6-7 बार त्वचा निमोर्चन कर 17-22 दिनों में अपना ईल्लिकाल पूर्ण कर सफेद रेशो एवं पत्ती से मिश्रित बने कोये में शंखी में परिर्वतित हो जाती है। शंखी कल 8-17 दिनों का होता है। वयस्क कीट7-20 दिनों तक जीवित रहते है। कीट का जीवन चक्र सितंबर में 31-35 दिनों का जबकि अक्टूबर से दिसम्बर में 38-43 दिनों का होता है।